विद्यार्थियों के लिए पाठशालाओं मैं रंगमंचीय प्रशिक्षण
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रंगमंच या नाट्य मंच के माध्यम से बालको में एक दूसरे से भावनात्मक बातचीत द्वारा प्रभावी रंगमंचीय कक्षाएं ,कार्यशालाओं में बालको द्वारा नाटको की प्रस्तुतियां ,पूर्णतः बच्चों को खेल खेल में ही नाट्क क़ी तैयारी के साथ साथ व्यक्तित्व विकास पर ध्यान दिया जाता है।
१. ध्यान पद्धति
२. कल्पना शक्ति उदाहरणों द्वारा
३. आत्म विश्वास ,कार्य में भाग लेकर
४. सहभागिता भiव
५. संवाद- कौशल
६. सांस्कृतिक चेतना
रंगा रंग मंच
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कार्यशाला को तीन भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक रंगमंचीय भाग बच्चों के सर्वांगीण विकास एवम सामाजिक कौशलता में सहायक होतi है।
१. शारीरिक खेल
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शारीरिक खेल मैं बाल नृत्य ,योग एवम तीव्र शारीरिक खेल होते है। जिससे बच्चों के शरीर में उत्साह ,आत्मविश्वास ,संवेदनशीलता एवम शारीरिक हाव भाव में तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करने की योग्यता व् शालीनता व्यक्त होती है।
२. . स्पष्ट ध्वनि एवम उच्चारण खेल
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स्पष्टवादिता एवम स्पष्ट उच्चारण ,मूल गीतों, साहित्यिक नाटकों एवम कविताओँ को खेल खेल में पढ़ाया व गवाया जाता है। इस मंच से विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति ,शब्द ज्ञान ,उच्चारण ज्ञान व अपने आवाज पर नियंत्रण, ,प्रदर्शन एवं प्रक्षेपण की दक्षता प्राप्त होती है। हमारा उद्देश्य बच्चों द्वारा स्पष्ट ,दृढ़तापूर्वक ,आत्मविश्वास के साथ आँखों से आँखें मिलाकर अपनी बात बच्चोँ से ही नहीं अपने से बड़ों से भी निर्भयता पूर्वक बात कर सकें।
३. भूमिका ( चरित्र ) खेल
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अपनी भूमिका व कर्तव्य का निर्वहन अपनी कल्पना द्वारा, आशुरचना करना ,निखार लाना होता है।विद्यार्थियों द्वारा अपने विशद एवम जीवंत कल्पनाओं को दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करने की दक्षता प्राप्त कर ,अपने आसपास के परिस्थितियों के अनुसार नये चरित्र का निर्माण करने क़ी कला सीखता है। .वे किसी भी परिस्थितियों में अपनी रचनात्मक कला द्वारा परिस्थितियों को अनुकूल बनाये रखने की शिक्षा प्राप्त करते हैं।
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